चलो ना आज कुछ यूँ करते हैं
आगाज़-ओ-अंजाम के सिरे जोड़ते हैं
अच्छा! ‘सा’ से चलो शुरू करते हैं.
03 शुक्रवार अगस्त 2012
Posted नज़्म
inबंजर से अनजान शहर में बंजारों सा दिल ले कर घूम रहा हूँ ढूंढ रहा हूँ पहचाने से चेहरे कुछ …
“कहाँ जा रहे हो?” घर से निकलते ही किसी ने आवाज़ दी और अपना मिजाज़ खराब. अब उन ‘पडोसी’ साहब …
अनगिनत मोहरों के बीच मैं खड़ा हूँ- एक मोहरा किसी ने चाल चल दी है और अब एक मोहरा खड़ा …
मेरी… अक्सर लोगों को कहते सुना है- दुनिया बहुत छोटी हो गयी है. मगर किसी ने तुम्हारे और मेरे दिल …
आना जब मेरे अच्छे दिन हों ! जब दिल में याद हो तुम्हारी- जलते दिए की तरह और मन के …
वो कुछ तो मुझसे छुपा रहा है नयी कहानी बना रहा है जो शख्स मेरा खुदा रहा था मेरी खुदी …
हज़ार कोशिश करो रोकने की वो मगर साथ ही आती है मौत जुड़वाँ है ज़िंदगी की
ज़मीं चुभती थी जब आसमां का अरमान था सितारे चुभते हैं अब
छल तो हर हाल में होना ही था आगे जाना दुनिया से पीछे जाना तुमसे बेबसी दगाबाज़ी नहीं होती है …